विवाह का स्वयंवर
title:- नारी ज्ञान से ही नारी उत्थान सम्भव subtitle:- विवाह का स्वयंवर कहावत :- जोड़ियां तो उपर वाला यानी भगवान के घर में बनाई जाती हैं अगर ऐसा होता तो स्वयंवर की प्रथा का क्या महत्व था, विवाह के लिए लड़का या लड़की खोजने की जरूरत ही क्या है? फिर पढ़ाई लिखाई के बारे में क्यों ही चिन्ता करी जाती है, फिर विवाह को बन्धन या कॉन्ट्रैक्ट क्यों कहा जाता है। फिर विवाहित जीवन को श्राप जैसा क्यूं जीते हैं पति पत्नी, खास कर बच्चे होने के बाद, बच्चे होने के बाद माता पिता बन जाते हैं तो क्या पति पत्नी नहीं रहते, नहीं बचते, सिर्फ माता पिता ही रह जाते हैं। या कहीं हमारे समझने में ही तो कोई त्रुटि कोई कन्फ्यूजन कोई भ्रम तो नहीं है मूल भाव ही हम नहीं समझ पाए कहावत का! क्या भगवान या परमात्मा भी नौकरी ही कर रहे हैं जोड़ियां बनाने की या कुछ भी करो तो भगवान जी का नाम लगा दिया जाता है। या उनको प्रोजेक्ट दे दिया जाता है। अगर जोड़ियां बनाना अपने यानी इन्सान के हाथ में होता ही नहीं तो ज्योतिष ज्ञान की तो जरूरत ही खत्म हो जाती, परंतु ऐसा कुछ भी है ही नहीं अगर माहोल को देखे समझें तो सभी कुछ लगता है ठीक ही है...